बिहार की शान - सुशांत



यूं रुक जाऊं मैं जो, वो सफर ही क्या? 
यूं थक जाऊं मैं जो, वो डगर ही कहां? 

सपना था जो मेरा, सच तो वह हुआ। 
मायानगरी की दौड़ में, कुछ धूमिल सा मैं हुआ ।

है अपना यहां नहीं कोई, कैसे मैं ये समझाऊं?
दूजो को तो बतलाया, खुद को कैसे बतलाऊं? 

फिर आऊंगा कभी, वापस इस नगरी में,
राज करूंगा फिर से, सब के दिल की तिजौरी में। 

यूं रुक जाऊं मैं जो, वो सफर ही क्या? 
यूं थक जाऊं मैं जो, वो डगर ही कहां

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